From Educators, With Love #1: Archna Kulshrestha


प्रिय मयूरी
 
मैं तुमसे जब भी मिलती हूँ मेरे अंदर विशेष छात्रों के प्रति श्रद्धा-भाव स्वतः ही जाग्रत हो जाता है और वैसे भी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में समावेशी शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत बौद्धिक रूप से कमज़ोर दृष्टि-बाधित, मूक एवं बधिर, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमज़ोर इत्यादि छात्रों को शिक्षा का भागीदार बनने अवसर प्रदान किया है। उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए विद्यालयों ने भी बुनियादी ढांचे में बदलाव किए हैं। पाठ्यक्रम के भी विकल्प उपलब्ध हैं परंतु समावेशी शिक्षण मेरी परिकल्पना में इससे कहीं इतर है।
 
सर्वेक्षणों के आधार पर यह स्पष्ट है कि आज भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत समाज के कई वर्ग अभी भी इसकी अनिवार्यता से अछूते हैं। सर्वप्रथम आवश्यकता है उन वर्गों की पहचान करने की और उनकी समस्याओं से रूबरू होने की। ‘उनकी समस्याओं का समाधान, शिक्षा प्राप्त करने से ही होगा।‘  उन्हें यह विश्वास दिलाने की।
 
कई बच्चे अन्य वर्ग के बच्चों के साथ एक ही विद्यालय में पढ़ने से घबराते हैं परंतु उनके मन के इस डर को दूर करना होगा कि सभी वर्ग के छात्रों के साथ एक ही छत के नीचे पढ़ने से उनकी भावनाएँ आहत नहीं होंगी बल्कि सबके साथ अपनी परेशानियों को साँझा करें तो सबके सहयोग से वे समाज को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
 
समाज के विकास हेतु इस आपसी सहयोग एवं सौहार्द्र की महती आवश्यकता है। विद्यालय के शिक्षकों एवं सामान्य छात्रों को विभिन्न कार्यशालाओं एवं चलचित्रों के माध्यम से विशेष ज़रूरतों वाले छात्रों की समस्याओं से अवगत कराते हुए संवेदनशील बनाया जाना आवश्यक है।
 
इस शिक्षा के तहत परिवार के सदस्यों व स्वयं बच्चे को विद्यालय की ओर आकर्षित करने के लिए लुभावने प्रस्ताव देने होंगे जैसे यदि कोई आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार से है तो उसकी प्रतिदिन कोई दो विषय की कक्षाओं में उपस्थिति व अतिरिक्त समय में आजीविका हेतु प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। यदि कोई दृष्टि-बाधित है तो उसकी रुचि के अनुसार संगीत, नृत्य, कंप्यूटर, कला अथवा किसी विशेष खेल का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। छात्र अपनी रुचि के अनुसार यदि प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे तो वे विद्यालय आने के लिए उत्सुक रहेंगे ।
 
यदि हम इन विशेष ज़रूरत वाले छात्रों का विद्यालय में उपस्थित होना किसी भी प्रकार से सराहा जाए और उनकी छोटी-छोटी उपलब्धियों को भी सराहा जाए तो उन्हें अपनी उपस्थिति का महत्त्व पता चलेगा। उनकी विद्यालय में उपस्थिति में इज़ाफा होगा। इसके लिए हम गोल्डन स्टार, गोल्डन बैंड इत्यादि का प्रयोग कर सकते हैं।
 
इस प्रकार की समावेशी शिक्षा प्रणाली अधिक-से-अधिक विशेष ज़रूरत वाले छात्रों को शिक्षा के प्रति आकर्षित करने में सक्षम होंगी और एक समय ऐसा आएगा जब इस धरा पर सभी शिक्षित होंगे। सब एक-दूसरे का सहयोग करते विकास के भागीदार बनेंगे।
 
तुम्हें समावेशी शिक्षा प्रणाली के प्रति मेरा दृष्टिकोण कैसा लगा अवश्य लिखना।
अलविदा।
तुम्हारी सहकर्मी
अर्चना कुलश्रेष्ठ
 
 

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